राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्रोत – राजस्थान के स्वर्णिम इतिहास के बारे में संपूर्ण देश और विदेश जानता है। किस प्रकार राजपूत राजाओं ने अपनी तलवारों से मातृभूमि की रक्षा की और अपना रक्त बहाकर भी एक वीर योद्धा का परिचय दिया।
यह भी पढ़े राजस्थान के प्रमुख शिलालेख व अभिलेख – राजस्थान के सभी शिलालेखों की जानकारी विस्तार से।
राजस्थान का इतिहास जानने के लिए अनेक सारे स्रोत उपलब्ध है, जिन्हें सुरक्षित रखा गया है। तो आज हम आपको राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं? इस विषय में संपूर्ण जानकारी विस्तार से बताएंगे –
राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्रोत कौन-कौनसे हैं? Rajasthan Itihas ke Pramukh Strot

सांमोली शिलालेख
उदयपुर जिले के कोटडा तहसील में चमोली का शिलालेख उपस्थित हैं। इस शिलालेख से मेवाड़ के गुहिल शासकों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। यह शिलालेख मेवाड़ के गुहिल शासक शिलादित्य के शासनकाल 646 ईसवी के समय का है।
चाकसू की प्रशस्ति
चाकसू में गुहिल वंश के राजाओं की युद्ध में विजय का वर्णन प्रशस्ति पर मिलता है। यह प्रशस्ति शिलालेख उदयपुर के चाकसू नामक शहर में स्थित है, जो 813 ईसवी का बताया जा रहा है।
यह भी पढ़े- राजस्थान का इतिहास- राजस्थान का संपूर्ण इतिहास, history of Rajasthan in Hindi
हर्षनाथ की प्रशस्ति
हर्षनाथ की प्रशस्ति शिलालेख में चौहान राजवंश का वंश क्रम दिया हुआ है। यह शिलालेख सीकर जिले में हर्ष गिरी नामक एक पहाड़ी पर स्थित है। हर्षनाथ की यह प्रशस्ति 973 ईसवी की बताई जा रही है।
कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति
कीर्ति स्तंभ चित्तौड़गढ़ शहर के चित्तौड़गढ़ किले में स्थित है। स्तंभ का निर्माण रावल सिंह के शासन काल में हुआ था। यह कीर्ति स्तंभ 12 वीं शताब्दी का एक ऐतिहासिक स्रोत है, जिस पर 1460 में राणा कुंभा ने उत्कृष्ट करवाया था।
कुंम्भलगढ़ प्रशस्ति
कुंभलगढ़ प्रशस्ति शिलालेख संस्कृत एवं नागरी लिपि में लिखा है। जुहापुरा शिलालेख पांच सिलाओ में बना हुआ है। जो कुंभलगढ़ दुर्ग के कुंभ श्याम मंदिर में स्थित है।
राज प्रशस्ति
यह ऐतिहासिक स्तंभ महाराजा राज सिंह द्वारा सन 1676 ईस्वी में स्थापित करवाया गया था। इतिहासकार इसे संसार का सबसे बड़ा शिलालेख मानते हैं। राज प्रशस्ति का प्रत्यक्ष काले पत्थरों पर बना हुआ है और उन पर मेवाड़ का प्रारंभिक इतिहास भी अंकित है।
यह भी पढ़े- राजस्थान के प्रमुख किले व दुर्ग – Major Forts of Rajasthan
श्रृंगी ऋषि का लेख
श्रृंगी ऋषि का यह लेख राणा मोकल के शासनकाल का है। यह लेख एकलिंग जी के श्रृंगी ऋषि नामक स्थान पर मौजूद है। इसमें राजा मोकल के वंशजों का संपूर्ण वर्णन मिलता है।
सच्चिया माता की प्रशस्ति
जोधपुर शहर की ओसिया तहसील मे सचिया माता का मंदिर स्थित है। जोधपुर में स्थित यह मंदिर जिले का सबसे बड़ा मंदिर है। इस प्रशस्ति में कीर्तिपाल का वर्णन मिलता है।
घोसुण्डी शिलालेख
घोसुंडी शिलालेख संस्कृत व ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ है। यहां शिलालेख चित्तौड़गढ़ में मौजूद है, जो ब्राह्मी लिपि व संस्कृत भाषा में लिखित प्राचीनतम शिलालेखों में से एक है।
बिजौलिया शिलालेख
बिजोलिया शिलालेख की ऊंचाई 512 मीटर है। यह शिलालेख राजस्थान के भीलवाड़ा शहर में स्थित है। इसे 1170 ईसवी का माना जाता है। यहां शिलालेख पार्श्वनाथ मंदिर के पास एक चट्टान पर स्थित हैं।
यह भी पढ़े- राजस्थान के प्रमुख रीति-रिवाज Rajasthan Ke Riti Riwaj
रणकपुर प्रशस्ति
रणकपुर प्रशस्ति को रणकपुर के चतुर्मुख मंदिर पर संन् 1439 ईस्वी में बनवाया गया था। इस प्रशस्ति पर मेवाड़ के राणा कुंभा की युद्ध में विजय प्राप्ति का भी वर्णन किया गया है।
मण्डोर का शिलालेख
मंडोर का शिलालेख जोधपुर शहर के मंडोर एक बावड़ी की शिला पर अंकित है। यह शिलालेख जोधपुर जिले के मंडोर शहर में भगवान विष्णु के मंदिर में स्थित हैं। इस शिलालेख में प्रतिहार राजवंश के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी अंकित है।
मानमोरी का शिलालेख
राजा मोन को मान मोरी भी कहा जाता है। वे अपने वंश के अंतिम शासक थे, उन्होंने चित्तौड़ में मानसरोवर झील बनवाई थी। मानसरोवर झील के तट पर यह शिलालेख स्थित है। इस शिलालेख में अमृत मंथन का जिक्र किया हुआ है।
यह भी पढ़े- राजस्थान की प्रमुख नदियाँ कौन-कौनसी है? Rivers of Rajasthan
अपराजिता का शिलालेख
अपराजिता का शिलालेख पर गोहिल शासक की विजय के बारे में वर्णन किया हुआ है। गोहिल शासकों की लगातार शानदार विजय पर संपूर्ण सार इस शिलालेख पर अंकित है। यह शिलालेख नागदा गांव के कुंडेश्वर मंदिर में 661 ईसवी में मिला था। यह एक अत्यंत प्राचीन शिलालेख है।
नगरी का शिलालेख
नगरी का शिलालेख संस्कृत व नागरी लिपि में अंकित है। इस शिलालेख पर 424 ईस्वी में भगवान विष्णु की पूजा करने का उल्लेख मिलता है। यह शिलालेख चित्तौड़गढ़ किले के उत्तरी क्षेत्र में एक प्राचीन स्थान पर मौजूद है।
नांदसा यूप स्तम्भ लेख
यह स्तंभ लेख 5:30 फिट गोलाई में एक गोल स्थान पर बना हुआ है। इसकी ऊंचाई 12 फीट की है। यह स्तंभ भीलवाड़ा में एक तालाब पर बना हुआ है।
कणसवा का लेख
इस अभिलेख में धवल नामक राजा का वर्णन किया गया है। जो मौर्यवंशी शासक थे। यह अभिलेख 795 ईसवी का है। यह शिलालेख राजस्थान के कोटा जिले में मिला था।
यह भी पढ़े- राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्य- Folk Dance of Rajasthan
चित्तौड़गढ़ का शिलालेख
यह शिलालेख संस्कृत और ब्राह्मी लिपि में अंकित है। इस शिलालेख से वैष्णव धर्म के बारे में जानकारी मिलती है। चित्तौड़गढ़ के इस शिलालेख में गोहिल शासकों की धार्मिक नीतियों के बारे में भी वर्णन किया गया है। यह शिलालेख चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
जैन कीर्ति स्तम्भ का लेख
जैन कीर्ति स्तंभ 13वीं सदी का प्रमुख शिलालेख है, इसमें जीजा के वंशजों का उल्लेख मिलता है। यह अभिलेक राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
बीकानेर दुर्ग की प्रशस्ति
बीकानेर दुर्ग प्रशस्ति शिलालेख में राव चिका से राव राय सिंह तक के सभी शासकों की युद्ध में विजय और उनकी उपलब्धियों का बखूबी वर्णन किया गया है। यह शिलालेख बीकानेर दुर्ग के मुख्य द्वार पर स्थित है।
सिवाणा का लेख
शिवाना के इस अभिलेख में राजा राव मालदेव की जोधपुर में स्थित सिवाना विजय का जिक्र किया गया है। यह अभिलेख 10 वीं शताब्दी का है जिसका निर्माण पंवार वंश के शासक राजा भोज के पुत्र वीर नारायण ने करवाया था।
किरांडू का लेख
किराडू के इस अभिलेख को राजस्थान का खजुराहो कहा जाता है। यह शिलालेख बाड़मेर में मिला था। इस शिलालेख पर परमार राजवंश की उत्पत्ति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी अंकित है।
यह भी पढ़े- राजस्थान मे प्रमुख बांध कौन-कौन से हैं? Dams of Rajasthan
चीरवा का शिलालेख
यह शिलालेख उदयपुर जिले के चीरवा गांव में स्थित हैं, जो मंदिर की बाहरी दीवार पर अंकित है। यह शिलालेख संस्कृत के 51 श्लोकों में लिखा हुआ है। इसमें गोहिल वंश के तेज सिंह, समर सिंह, पदम सिंह, बप्पा रावल इत्यादि शासकों का बखूबी वर्णन किया गया है।
रसिया की छत्री
इस शिलालेख पर आदिवासी लोगों के वेशभूषा, आभूषण, योग्य परंपरा और शिक्षा की जानकारी मिलती हैं। यह शिलालेख चितोड़ गढ़ दुर्ग के पीछे के द्वार पर लगा हुआ है।
इस शिलालेख में राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी पहाड़ी भागों की वनस्पति का चित्रण किया गया है। यह शिलालेख सन 1274 ईसवी का है।
समिधेश्वर मंदिर का शिलालेख
इस शिलालेख की रचना एकनाथ ने की थी। यह चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है। इस शिलालेख में परमार वंश व सिसोदिया राजवंश की जानकारी मिलती है। इस शिलालेख में भगवान विष्णु के मंदिर का उल्लेख मिलता है।
गंभीरी नदी के पुल का लेख
यह शिलालेख गंभीरी नदी के पुल पर स्थित है इस शिलालेख में मेवाड़ के महाराणा, उनकी धर्म नीति व मेवाड़ की आर्थिक स्थिति पर उल्लेख मिलता है।
आबू का लेख
सन 1342 ईस्वी के इस अभिलेख में मेवाड़ के शासक बप्पा रावल से समर सिंह तक के सभी शासकों का संक्षिप्त में वर्णन मिलता है।
चित्तौड़ के पार्श्वनाथ के मंदिर का लेख
इस शिलालेख में राणा हमीर का भीलो के साथ ही युद्ध होने का वर्णन मिलता है। यह अभिलेख 1278 ईसवी का है।
देलवाड़ा का शिलालेख
इस शिलालेख को संस्कृत और मेवाड़ी भाषा में लिखा गया है। इस शिलालेख में टंक नाम की मुद्रा के प्रचलन का उल्लेख मिलता है। यह शिलालेख 1334 ईस्वी का है, जो सिरोही के देलवाड़ा में स्थित है।
यह भी पढ़े- राजस्थान के प्रमुख आभूषण – Rajasthan Ke Aabhushan hindi
रायसिंह की प्रशस्ति
यह प्रशस्ति शिलालेख सन 1593 ईसवी का है, इसमें बीकानेर के सभी शासकों की उपलब्धियों का बखूबी वर्णन किया गया है। इस प्रशस्ति को राय सिंह ने किले के भीतर अंकित करवाया था।
अंतिम शब्द
राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं? इस विषय से संबंधित संपूर्ण जानकारी हमने आपको इस लेख में संक्षिप्त में बताइ है। राजस्थान के इतिहास को जानने के लिए कौन-कौन से स्रोत, कौन-कौन से शिलालेख, कौन-कौन से अभिलेख हैं। यह सभी जानकारी इस आर्टिकल में मौजूद है।
हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह जानकारी ” राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं? ” जरूर पसंद आएगी। तो इस आर्टिकल को आप अपने मित्रों और परिवारजनों के साथ सोशल मीडिया के जरिए शेयर जरूर करें।