राजस्थान के प्रमुख रीति-रिवाज – राजस्थान अपनी सांस्कृतिक परंपरा एवं खूबसूरत रीति- रिवाज के लिए विश्व भर में जाना जाता है। राजस्थान अपनी समृद्ध संस्कृति, धरातल, विरासत, प्राचीन हवेलियां, किले, महल, इमारत, स्मारक, वन्य जीव अभ्यारण एवं लोगों के भाषा-विचार व रीति रिवाज के लिए जाना जाता है।
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राजस्थान के प्रमुख रीति-रिवाज कौन-कौन से हैं? Major customs of Rajasthan
राजस्थान में अनेक प्रकार की जनजातियां, अनेक धर्म के लोग रहते हैं। राजस्थान में भारत के सबसे ज्यादा रिती- रिवाज, व व्रत त्योहार मनाए जाते हैं। तो आज हम आपको राजस्थान के प्रमुख रीति-रिवाज के बारे में बताएंगे –
(Rajasthan ke pramukh Riti Riwaz)
राजस्थान में जन्म से संबंधित रीति-रिवाज कौन-कौन से हैं?
सोलह संस्कार
सोलह संस्कार को षोडश संस्कार भी कहा जाता है।
राजस्थान में हिंदू धर्म के लिए सोलह संस्कारों का उल्लेख किया जाता है, 16 संस्कारों का यह उल्लेख बच्चे को जन्म से लेकर मृत्यु तक किए जाते हैं।
गर्भाधान
यहां 16 संस्कारों में से पहला संस्कार हैं। इस संस्कार के जरिए बच्चे की आत्मा प्रवेश करते हैं ऐसा संस्कार में नवविवाहिता स्त्री के गर्भवती होते ही उत्सव का आयोजन किया जाता है।
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पुंसवन
यह दूसरा संस्कार हैं इसमें गर्भावस्था के चौथे महीने में अनुष्ठान का संस्कार मनाया जाता है इसी दौरान स्त्रि उपवास करके देवी देवताओं की पूजा करते हैं।
सीमंतोनयन
इस संस्कार को गर्भावस्था के आठवें महीने में अमंगलकारी शक्ति से बचाने के लिए गर्भवती महिला की माता विशेष प्रकार की मिठाइयां भेजती हैं। ऐसा संस्कार को आगरणी संस्कार भी कहा जाता है।
जातकर्म
यह चौथा संस्कार है इस संस्कार में बच्चे के जन्म होते ही उसके लिंग का पता किया जाता है। बालक के पैदा होते ही पिता स्नान कर उसी समय पाटक्रम संस्कार किया जाता है।
नामकरण
बच्चा पैदा होने के 7 दिनों बाद बच्चे की नाम रखने हेतु नामकरण किया जाता है। इस दिन जोशी को बच्चे के नामकरण हेतु आमंत्रित किया जाता है और एक उत्सव का आयोजन किया जाता है।
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निष्क्रमण
ऐसा संस्कार में बच्चे के पिता शंख की ध्वनि और वैदिक भजनों की ध्वनि के साथ बच्चे को सूरज की ओर दिखाता है।
दशोटन
इस दिन बच्चे को पहली बार उनका आहार करवाया जाता है।
चूड़ाकरण
ऐसा दिन बच्चे की सर के बाल पहली बार काटे जाते हैं। इसीलिए इसे चूड़ाकरण या मुंडन उत्सव संस्कार कहा जाता है।
कर्णबोध
इस संस्कार में शिशु के कान बींधने जाते हैं। जिससे कि उसके कानों में आभूषण पहनाया जा सकें।
विद्यारंभ संस्कार
ऐसा संस्कार में बच्चे को ज्ञान दिया जाता है। मंदिर या घर में ज्ञान की शुरुआत की जाती है।
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जनेऊ संस्कार
इस संस्कार में बालक को जनेऊ पहनाकर गुरु के पास ज्ञान की प्राप्ति हेतु भेजा जाता है।
वेदारंभ
इस संस्कार में बच्चा अपने गुरु के पास वेदों का ज्ञान अध्ययन करता है, तब यह संस्कार किया जाता है।
केशांत
जब बच्चा बड़ा हो जाता है, तब वह पहली बार दाढ़ी और मूंछ कट जाता है तब इस संस्कार को किया जाता है।
समावर्तन
गुरुकुल में गुरु के पास शिक्षा पूर्ण होने के बाद जब वहां युवक गुरुकुल से विदाई ले कर अपने जीवन के उद्देश्य की ओर आगे बढ़ता है तब यह संस्कार किया जाता है।
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विवाह
इस संस्कार से ही ब्रह्मचारी व्यक्ति गृहस्थी प्रवेश करता है। मानव समाज में यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा है।
राजस्थान में विवाह के विधि-विधान (रीति-रिवाज) कौन-कौन से हैं?
संबंध तय करना
सबसे पहले विवाह करने के लिए लड़का व लड़की का रिश्ता तय करते हैं, उसके पूर्व ही दोनों की कुंडली मिलाकर गुण मिलान करते हैं।
सगाई
लड़का और लड़की के गुण आपस में मिलने के बाद रिश्ता तय करने के लिए नारियल और ₹1 देकर सगाई पक्की कर दी जाती है। इसे स्थानीय भाषा में सगपण कहते हैं।
सिंझारी
सगाई के बाद सिंधारी किया जाता है श्रावण मास की कृष्ण तृतीया के दिन इस पर्व पर कन्या पक्ष के लिए भेजा जाने वाला समान को सिजारी कहा जाता है।
चिकणी कोथळी
सगाई के बाद तीज के त्यौहार पर व गणेश चतुर्थी के त्यौहार पर वर पक्ष से वधू पक्ष को दिए जाने वाले मिठाई और कपड़े को पहारावणी या चिकणी कोथळी कहते हैं।
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पीली चिट्ठी
शादी का दिन तय करने के लिए दोनों पक्ष एक नारियल लेकर आ एक दूसरे के यहां जाते हैं।

कुंकुम पत्री
विवाह की तारीख तय होने के बाद शादी में अपने सभी सगे संबंधियों, बहन, बेटियों, भाई, गनायत, रिश्तेदारों व गांव के लोगों को आमंत्रित करने के लिए एक पत्र भेजा जाता है इसे स्थानीय भाषा में कुमकुम पत्रिका कहते हैं।
बतीसी देना
वर-वधु की माता शादी से पूर्व अपने पीहर वालों को शादी के लिए निमंत्रण देती है, जिससे कि वर या वधू की माता के पीहर वाले अपनी बहन के बच्चों की शादी में मायरा कर सकें।
इकताई
शादी में पहनने वाले कपड़ों को बनवाने के लिए मुहूर्त के हिसाब से दर्जी नाप लेने के लिए आता है, उसे एकताई कहते हैं।
छात
विवाह के मांगलिक अवसर पर नाई को दिए जाने वाला नेक छात कहलाता है।
पाट
वर पक्ष और वधु पक्ष दोनों ही विवाह की पत्रिकाओं को एक दूसरे के यहां भेजते हैं तब दोनों ही घरों में गणेश की पूजा की जाती है उसे पाठ कहते हैं।
घृतपान
वर वधु को घी पिलाने की रस्म की जाती है। इसमें सबसे पहले वर वधु के माता पिता वर वधु को भी पिलाते हैं। उसके बाद परिवार के सभी बड़े जो वर-वधू से बड़े हैं वे भी वर वधु को भी पिलाते हैं।
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हल्दायत
सनातन धर्म में शादी की शुरुआत में हल्दी की रस्म की जाती है। इस रस्म को कुंवारी कन्या व सुहागिन स्त्रियां वर-वधु को हल्दी का लेप लगाकर करती हैं। इसमें घी व हल्दी से बने पेस्ट को दूल्हा-दुल्हन के शरीर पर लगाकर पीटी चढ़ाई करते हैं।
तेल चढ़ाना
तेल चढ़ाने की रस्म तब की जाती है जब बारात पहुंच जाती हैं उस समय वधू के तेल चढ़ाने की रस्म की जाती है।
मायरा भरना
वर वधु की माता के पीहर वाले अपनी इच्छा के अनुसार पैसे गहने व सभी परिवार वालों के लिए कपड़े लाते हैं उसे मायरा भरना कहते हैं।
थेपड़ी पूजन
थेपड़ी पूजन की को बारात रवाना होने से पहले स्त्रियों द्वारा गीत गाते हुए वर से कूड़े कचरे के ढेर से छुपे हुए गहने को निकालने के लिए कहते हैं। उस समय कूड़े कचरे के ढेर पर पूजा की जाती है।
बंदौला
वर वधु को मिलाकर हल्दी की रस्म पूरी होने के बाद वर वधु अपने परिवार के किसी भी घर पर खाना खाने जाते हैं उसे बंदौला कहते हैं।
बिंदौली
बंदोली विवाह से 1 दिन पहले दूल्हा और दुल्हन के घर पर दूल्हा दुल्हन विवाह के कपड़ों में सजधज कर तैयार होकर घोड़ी पर बैठकर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। इस कार्यक्रम में घर परिवार व रिश्तेदारों की सभी महिलाएं दुल्हा-दुल्हन के सामने नाचती है।
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सामेला
बारात जब वधु के घर पर पहुंच जाती हैं तो सभी बारातियों को दूल्हे के साथ स्वागत हेतु बिठाया जाता है उसे सामेला कहा जाता है।
तोरण भांदना
दूल्हा जब दुल्हन के घर के दरवाजे पर पहुंचता है तो दरवाजे पर तोरण लगा हुआ होता है उसे घोड़ी पर चढ़कर तलवार से मारता है।
झाला मेला की आरती
दूल्हा जब तोरण मार कर घोड़ी से नीचे उतरता है तब दुल्हन की वर को तिलक करके आरती उतारती है। इसी दौरान दुल्हन की मां दूल्हे को ₹1 का सिक्का दही से दूल्हे के ललाट पर चिपकाती है।
कामण
वधू की मां जब दूल्हे की आरती उतारती हैं उस समय पीछे खड़ी घर-परिवार और रिश्तेदारों की सभी महिलाएं रसभरी प्रेम के गीत गाती हैं, उसे कामण कहा जाता है।
यज्ञ वेदी
पंडित विवाह मंडप में यज्ञ वेदी बनाकर करते हैं, इसमें पंडित द्वारा विवाह के मंत्र पढ़कर यज्ञ किया जाता है।
कांकण बंधन
वर और वधू दोनों के दाहिने हाथ में एक धागा बांधा जाता है जिसे कांकण बंधन कहते हैं। इस समय वर वधु दोनों के हाथों को आपस में मिलाकर विवाह शुरू किया जाता है।
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हथलेवा जोड़ना
मंडप में दूल्हा दुल्हन को बैठाकर दोनों के हाथों को एक दूसरे के हाथ में देते हैं। चांदी का सिक्का व मेहंदी को बीच में रखकर दूल्हा दुल्हन दोनों एक दूसरे के हाथ को पकड़ते हैं। तब हथलेवा कहा जाता है, क्योंकि उस समय सभी रिश्तेदार और गांव के लोग वधु को कन्यादान के रूप में पैसे देते हैं।
गठबंधन
मंडप में बैठे दूल्हा और दुल्हन को पंडित द्वारा वस्त्रों के छोर को बांधकर गठबंधन की रस्म की जाती है।
अभयारोहण
वर वधु का गठबंधन करने के बाद दोनों को पतिवर्ता व पत्नीवर्ता के लिए सात जन्म तक साथ निभाने के लिए एक दूसरे का हमेशा 7 निभाने के लिए शपथ दिलाई जाती है।
परिणयन/फेरे
वर वधु द्वारा फेरे लिए जाते हैं फेरे लेने के बाद विवाह संपन्न हो जाता है, दोनों एक दूसरे के पति-पत्नी बन जाते हैं।
टूँटीया की रस्म
इस रस्म को तब किया जाता है, जब दूल्हे की शादी हो रही होती है। जब दूल्हा- दुल्हन के घर पर शादी करता है, तब दूल्हे के घर पर पीछे हंसी मजाक के तौर पर एक अनोखी व मनोरंजन भरी रस्म की जाती है जिसे टूटिया काडना कहते हैं।
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कन्यादान
शादी होने के बाद दुल्हन के पिता वह सभी रिश्तेदारों द्वारा दुल्हन को दिए जाने वाले दान को कन्यादान कहते हैं।
माया की गेह
शादी होने के बाद वधु की बहने, सहेलियां व वधू पक्ष की लड़कियों द्वारा वर की हंसी उड़ाई जाती है।
जेवनवार
बारातियों को वधू पक्ष की तरफ से भोजन देने की प्रथा को जैगवार का जाता है।
जुआ जुई
विवाह संपन्न होने के दूसरे दिन दूल्हे को कंवर कलेवा करवाते समय दूल्हा दुल्हन से जुआ जूही का खेल खिलाया जाता है।
मांमाटा
वधू पक्ष की तरफ से वधू की सास के लिए भेजे जाने वाले उपहार को मांमाटा कहते हैं।
कोयलड़ी
वधू की विदाई के समय परिवार और गांव वाली स्त्रियों के द्वारा गाए जाने वाले गीत को कोयलड़ी कहते हैं।
सीटणा
मेहमानों को जब भोजन करवाया जाता है उस समय घर की स्त्रियां द्वारा गाए जाने वाले गीत को सीटणा कहते हैं।
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बारणा रोकना
जब और वधु को लेकर घर पर आता है तब वर की बहने प्रवेश द्वार पर उन्हें रोककर नेक के रूप में कुछ पैसे और गहने लेती हैं उसे बारणा रोकना कहते हैं।
रातिजोगा
वधू को वर जब पहली बार घर लेकर आता है तो उस रात को देवी देवताओं के भजन स्त्रियों द्वारा गाए जाते हैं।
जात देना
विवाह संपन्न होने के बाद वर वधु द्वारा अपने देवी देवताओं को प्रसाद चढ़ाकर परिक्रमा करने की रस्म को जात देना कहते हैं।
सोटा-सोटी खेलना
दूल्हा दुल्हन नीम के पेड़ के नीचे गोलाकार घूमते हुए नीम की छोटी सी टहनियों से एक दूसरे को मारते हैं। इस रस्म को सोटा-सोटी खेलना कहते हैं।
ओलंदी
वधु के भाई जब अपनी बहन को पहली बार लेने आते हैं तो उसे ओलंदी कहते हैं।
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ननिहारी
जब कोई पहली बार वधु को लेने आता है तो उसे ननिहारी कहा जाता है।
मांडा झाँकना
विवाह के बाद लड़का जब पहली बार अपने ससुराल पत्नी को लेने जाता है तो उसे मांडा झांकना कहते हैं।
बढ़ार
शादी संपन्न होने के बाद वर पक्ष के घर पर वर वधु को आशीर्वाद देने के लिए प्रतिभोज समारोह किया जाता है उसे बढार कहते हैं।
अंतिम शब्द
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