राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्य- लोक नृत्य, लोक गीत, कला संस्कृति व पहनावा राजस्थान की शान माना जाता है | राजस्थान में राजपूत राजाओं के समय से ही राजपूत समाज में वैवाहिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम में लोक नृत्य और लोक गीतों की प्रस्तुति दी जाती है, जो विश्व प्रसिद्ध है |
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राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्य कोन-कोन से है?
1. घूमर नृत्य
2. कालबेलिया नृत्य
3. पनिहारी नृत्य
4. तेराताली नृत्य
5. भवई नृत्य
6. ढोल नृत्य
7. कठपुतली नृत्य
8. घुड़ला नृत्य
9. लूर नृत्य
10. डांडिया नृत्य
11. कच्छी घोड़ी नृत्य
12. बम नृत्य
13. चरी नृत्य
15. गींदड़ नृत्य
16. चंग नृत्य
17. गेर नृत्य
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राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्य- Folk Dance of Rajasthan
इस आलेख में हम आपको राजस्थान के प्रमुख व प्रसिद्ध लोकनृत्य के बारे में विस्तार से बताएंगे-
घूमर नृत्य
राजस्थान में घूमर लोक नृत्य दुनिया भर में प्रचलित है | राजस्थान का नाम आते ही घूमर नृत्य का नाम सबसे पहले आता है | घूमर नृत्य को “राज्य नृत्य” के रूप में जाना जाता है | घूमर को लड़कियों का सिरमौर भी कहा जाता है |
घूमर रजवाड़ी परिवारों में मांगलिक व वैवाहिक अवसरों पर महिलाओं द्वारा घेरा बनाकर नृत्य किया जाता है, ज्यादा घेरवाले घागरे पहनकर घूमर लोक नृत्य किया जाता है |
राजस्थान में मांगलिक कार्यक्रम में घूमर नृत्य प्रसिद्ध और प्रचलित है |
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पनिहारी नृत्य
घूमर नृत्य की ही तरह पनिहारी नृत्य भी राजस्थान में प्रसिद्ध है | पणिहारी नृत्य को महिलाएं सर पर मिट्टी के घड़े रखकर हाथ व पैरों से वाद्य गति पर नृत्य करती हैं | इस नृत्य को त्यौहार या उत्सव के मौके पर एक समूह में किया जाता है |

डांडिया नृत्य
नगाड़ा और शहनाई के साथ इस नृत्य को पुरुष होली के अवसर पर करते हैं | यह राजस्थान का प्रसिद्ध नृत्य है | इस नृत्य में पुरुषों आपस में टकराते हुए घुमावदार डांस करते हैं |
कालबेलिया नृत्य
राजस्थान में कालबेलिया नृत्य शैली अत्यंत प्राचीन और अत्यंत प्रसिद्ध है | राजस्थान की कालबेलिया नृत्य शैली देश नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है | इसे देखने के लिए हर वर्ष लाखों सैलानी राजस्थान की यात्रा करते हैं |
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राजस्थान में ‘सपेरा जाति’ को कालबेलिया कहते हैं | कालबेलिया डांस को महिलाएं राजस्थानी वेशभूषा में काले रंग के कपड़े, चुंदड़ी ,आभूषण इत्यादि पहनकर नृत्य करते हुए कांच के टुकड़े व नंगी तलवारों पर डांस करती है |
घुड़ला नृत्य
घुड़ला नृत्य मारवाड़ का प्रमुख व प्रचलित नृत्य है | इस नृत्य में एक मटके को छेद करके दीपक रखकर स्त्रियां टोली बनाकर, पनिहारी या घूमर की तरह गोल घेरे में गीत गाती हुई नाचती है | इस नृत्य को ढोल-थाली, नौबत-बाजा, राग-ढोलक इत्यादि वाद्य यंत्रों पर ताल के साथ नृत्य किया जाता है | यह नृत्य आमतौर पर होली के अवसर पर किया जाता है|
चरी नृत्य
चरी नृत्य राजस्थान के अजमेर और किशनगढ़ जिले में बहु प्रचलित नृत्य है | यह नृत्य राजस्थान ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत में आकर्षक का विषय बना हुआ है | चरी नृत्य को राजस्थान में सामूहिक लोक नृत्य है |
गेर नृत्य
गैर नृत्य राजस्थान का पारंपारिक व प्रसिद्ध नृत्य हैं | गैर नृत्य राजस्थान का अत्यंत सुंदर और मधुर नृत्य है | गैर नृत्य में भील आदिवासी लोग विशेष प्रकार के राजस्थानी वेशभूषा में एक झुंड में होकर होली के अवसर पर नृत्य करते हुए गायन करते हैं |
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गैर नृत्य राजस्थान में अत्यंत प्रचलित है, गैर नृत्य करने वाली महिला और पुरुष को गेरिया कहते हैं | यह नृत्य पुरुष पट्टेदार अंगरखे एवं पूर्ण लंबाई की कमीज पहनकर व महिलाएं पारंपरिक पोशाकें पहनकर एक साथ करती हैं |
चंग नृत्य
ढोल की तरह चंग भी एक राजस्थानी वाद्य यंत्र है, चंग की तालबद्ध गति के साथ नृत्य करने पर “चंग नृत्य” कहा जाता है | चंग नृत्य विशेष तौर पर होली पर्व पर आयोजित होता है| इस नृत्य को लोग पूरे गांव में घूमते हुए गायन के साथ-साथ करते हैं | यह नृत्य मारवाड़ व शेखावाटी क्षेत्रों में प्रचलित है |
गींदड़ नृत्य
गीदड़ नृत्य शेखावाटी क्षेत्र में लोकप्रिय है | इस नृत्य को विशेष तौर पर होली के अवसर पर किया जाता है | होली के अवसर पर यह नृत्य सामूहिक कार्यक्रम में किया जाता है | इस नृत्य में अनेक प्रकार के नाटक भी किए जाते हैं |
तेराताली नृत्य
राजस्थान के प्रसिद्ध लोक नृत्य कि श्रेणी में तेरहताली नृत्य भी शामिल है | तेरहताली नृत्य को विशेष तौर पर कामड जाति की महिलाएं करती है | शरीर के 13 स्थानों पर गुगरू और मंजीरे बांधकर ढोल-मंजीरा के वाध्य ताल पर इस नृत्य को किया जाता है |
तेरहताली नृत्य को लोक देवता रामदेव जी के भजनों पर भी किया जाता है, यह लोकनृत्य कामड जाति की परंपरा भी है |
बम नृत्य या बमरसिया
बम नृत्य को राजस्थान में विशेष तौर पर अलवर क्षेत्र में होली के समय किया जाता है | इस नृत्य में ढोल, मंजीरा, खरताल, चिमटा, थाली इत्यादि वाद्य यंत्र पर दो व्यक्ति एक नगाड़े को बचाते हुए करते हैं | इस नृत्य को नई फसल के आने की खुशी में किया जाता है | बमरसिया नृत्य करते समय होली के गीत भी गाए जाते हैं |
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कच्छी घोड़ी नृत्य
कच्छी घोड़ी नृत्य राजस्थान का बहुत चर्चित और प्राचीन नृत्य है | इस नृत्य मे कागज व कपड़े का से बना सनावड़ा होता है इस घोड़े पर बैठा दूल्हा पारिवारिक वेशभूषा में रहता है | इस नृत्य में दो महिलाएं एक घुड़सवार के साथ नृत्य करती हैं |
भवई नृत्य
भवई नृत्य को चमत्कारीता व अनेक प्रकार के करतब दिखाने हेतु जाना जाता है | यह नृत्य मुख्यत: उदयपुर क्षेत्र में प्रचलित है | इस नृत्य में नाचते हुए सिर पर एक के बाद एक 8 मटके रखकर थाली के किनारों पर नाचना, गिलासों पर नृत्य करना, कांच के ऊपर नृत्य करना, नुकीली कीलों पर नाचना, नाचते हुए जमीन पर मुंह से रुमाल उठाना, इत्यादि अनेक प्रकार के करतब इस नृत्य में किए जाते हैं |
ढोल नृत्य
ढोल नृत्य संपूर्ण राजस्थान में मांगलिक कार्यक्रम व वैवाहिक कार्यक्रम, सामाजिक कार्यक्रम, सांस्कृतिक कार्यक्रम पर सभी र्वत, त्योहारों पर किए जाने वाला सार्वजनिक नृत्य है | इस नृत्य में महिलाएं ढोल वाद्य यंत्र की ताल पर नृत्य करती हैं | ढोल नृत्य एक से अधिक महिलाएं भी साथ में करती हैं, जबकि पुरुष भी ढोल पर नाचते हैं |
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लूर नृत्य
लूर नृत्य को मारवाड़ क्षेत्र में होली शुरू होने से पहले फाल्गुन माह के आरंभ से ही किया जाता है | लूर नृत्य को होली दहन होने तक पूरे एक फाल्गुन माह में किया जाता है | लूर नृत्य महिलाओं का एक नृत्य है, जिसमें महिलाएं शाम के समय मजाक मस्ती के तौर पर नाचती है |
कठपुतली नृत्य
राजस्थान के सबसे प्राचीन एवं विश्व प्रसिद्ध नृत्यों की सूची में कठपुतली नृत्य प्रमुख हैं | कठपुतली नृत्य महान लोकनायक जैसे- महाराणा प्रताप, रामदेव जी, तेजाजी, गोगाजी, इत्यादि की कथा पर कठपुतली के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है|
यह राजस्थान की लोकप्रिय लोक कला है, जो पूरे मारवाड़ में प्रचलित है | वर्तमान समय में इसे भारत के अनेक राज्यों में भी कहीं कार्यक्रम में किया जाता है | इस नृत्य में कपड़े के बने स्त्री-पुरुषों को धागे से बांध कर एक विशेष प्रकार से नृत्य करवाया जाता है, इस कला को “कठपुतली नृत्य” कहा जाता है |
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अंतिम शब्द
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