राजस्थान के प्रमुख शिलालेख व अभिलेख- राजस्थान में समय-समय पर पुरातात्विक विभाग द्वारा की गई खुदाई में अनेक प्रकार के प्राचीनतम व महत्वपूर्ण शिलालेख निकले थें | राजस्थान के अनेक सारे प्राचीन किलों व हवेलियों में महतवपूर्ण अभिलेख मौजूद है, जिनसे हमें इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है | राजस्थान के प्रमुख शिलालेख व अभिलेख
राजस्थान में स्थित प्रमुख अभिलेख व शिलालेख
इस आलेख में हम आपको राजस्थान के सभी व प्रमुख शिलालेख/अभिलेख के बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तार से बताएंगे। इसीलिए इस आलेख को आप पूरा जरूर पढ़ें।
राजस्थान के प्रमुख शिलालेख व अभिलेख कौन-कौन से हैं?
बड़ली का शिलालेख
राजस्थान का सबसे प्राचीन शिलालेख अजमेर के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है | यह शिलालेख गौरी शंकर हीराचंद ओझा को भिलोत माता के मंदिर में मिला था | यह राजस्थानी व ब्राह्मी लिपि का सबसे प्राचीन शिलालेख है |
यह शिलालेख अजमेर जिले के बड़ली गांव में रखा गया है | ये शिलालेख 443 ईसवी पूर्व का व विक्रम संवत 348 का है|
इस शिलालेख को दितीय शताब्दी ईसा पूर्व में भागवत धर्म का प्रचार-प्रसार करने हेतु बनवाया गया था | इस शिलालेख पर वासुदेव के पूजा ग्रहण अश्वमेध यज्ञ और गज वंश का उल्लेख मिलता है |
इस शिलालेख को सर्वप्रथम डॉक्टर डी०आर० भंडारकर ने पढ़ा था | इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि राजस्थान में वैष्णव या भागवत संप्रदाय प्राचीन काल में सर्वाधिक फैला हुआ था |
मानमोरी अभिलेख
यह 713 ई. का शिलालेख मानसरोवर झील के तट से “कर्नल टॉड” को मिला था |इस शिलालेख पर चित्तौड़ की प्राचीन शासक मौर्य वंश का इतिहास अंकित है | धार्मिक भावनाओं के आधार पर मानसरोवर झील का निर्माण करवाया गया था, यह भी इस शिलालेख में वर्णन किया गया है |
प्रतापगढ़ अभिलेख
इस शिलालेख से राजा महेंद्र पाल की जीवनी का वर्णन किया गया है | उस समय समाज व्यापार कृषि और धर्म के बारे में जानकारी दी गई है | यह 946 ई. का शिलालेख है |
सारणेश्वर प्रशस्ति
इस शिलालेख में मंदिर की व्यवस्था, व्यापार, कर. शासकीय पदाधिकारी और स्थानीय लोगों के बारे में जानकारी मिलती है | यह शिलालेख 953 ई. का है |
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बिजोलिया शिलालेख
यह शिलालेख 1170 ई० का है, जो बिजोलिया के पार्श्वनाथ जैन मंदिर के पास एक चट्टान पर अंकित है | चट्टान पर अंकित इस शिलालेख को जैन श्रावक लोलाक द्वारा मंदिर के निर्माण की याद में बनवाया गया था |
इस शिलालेख में अजमेर के चौहान वंश का उल्लेख मिलता है | इस शिलालेख पर संस्कृत भाषा में वर्णन किया गया है | गोपीनाथ शर्मा के अनुसार 12 वीं सदी के धार्मिक और जनजीवन व वातावरण के बारे में जानने हेतु इस अभिलेख को बनाया है |
इस शिलालेख में अनेक सारे क्षैत्रो के प्राचीन नाम भी देखने को मिलते हैं, जैसे- श्रीमाल (भीनमाल) मंडलगंढ (मांडलगढ़) जबालीपुर (जालौर) शाकंभरी (सांभर) दिल्लिका (दिल्ली) इत्यादि प्राचीन नाम इस अभिलेख पर मौजूद है |
रणकपुर प्रशस्ति
इस 1439 ई. शिलालेख में मेवाड़ के राजवंश एवं धरणक सेठ के वंश का वर्णन किया गया है | इस शिलालेख में काल भोज और बप्पा को अलग अलग व्यक्ति बताया गया है |इस शिलालेख में महाराणा कुंभा की युद्ध में विजय एवं उपलब्धियों का भी वर्णन किया गया है |
इस शिलालेख में गुहीलो को बप्पा रावल का पुत्र बताया गया है | इस शिलालेख में बप्पा रावल से राणा कुंभा तक की वंशावली दी गई है, जिसमें बप्पा रावल को गुहीलो का पिता बताया गया है |
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कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति
इस 1460 ई० के शिलालेख में मेवाड़ क बप्पा रावल से लेकर राणा कुंभा तक की वंशावली का वर्णन किया गया है | इस शिलालेख में राणा कुंभा की उपलब्धियां व उनके द्वारा रचित ग्रंथों का बखूबी वर्णन किया गया है | इसके अलावा गीत वह ग्रंथों का भी उल्लेख मिलता है |
कुंभलगढ़ शिलालेख
1460 ई० का यह शिलालेख कुंभलगढ़ दुर्ग में स्थित “कुंभ श्याम मंदिर” से मिला था | इस मंदिर को वर्तमान में “महादेव का मंदिर” भी कहते हैं | इस शिलालेख में गुहिल वंश का वर्णन किया गया है , इसके अलावा इस शिलालेख पर मेवाड़ के महाराणाओं की पूरी वंशावली बखूबी अंकित की गई है |
यह राजस्थान का एकमात्र ऐसा शिलालेख है जो महाराणा कुंभा के बारे में विस्तार से बताता है, इस शिलालेख में 2709 श्लोक वह ५ शिलालेखों का वर्णन मिलता है | इस शिलालेख में आश्रम व्यवस्था, शिक्षण व्यवस्था, तपस्या, युद्ध, हवन और दास्तां के बारे में उल्लेख मिलता है |
फारसी शिलालेख
भारत में मुसलमानों के आगमन के पश्चात फारसी भाषा की शिलालेख भी प्रचुर मात्रा में मिले हैं | मुख्य तौर पर फारसी भाषा के शिलालेख- मस्जिद, दरगाह, कब्र व तालाब के घाटों पर पत्थर पर बनाए गए हैं | इन शिलालेखों से राजस्थान के राजपूत शासकों के बारे में जानकारी मिलती है |
फारसी अभिलेखों से दिल्ली के सुल्तान तथा मुगल शासकों के मध्य हुए युद्ध व राजनीतिक संबंध के बारे में जानकारी मिलती है | फारसी भाषा में लिखा हुआ सबसे पुराना अभिलेख अजमेर में “ढाई दिन की झोपड़ी” के ‘गुंबज की दीवार’ के पीछे लगा हुआ मिला, यह शिलालेख 1220 ई० पूर्व का है |
फारसी शिलालेखों में संस्कृत पाठशाला को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाने की जानकारी उपलब्ध है | चित्तौड की गैबी पीर की दरगाह से मिले 1325 ईस्वी के फारसी शिलालेख में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद कर देने का जिक्र है |
नागौर और जालौर से मिले पारसी शिलालेखों से उन क्षैत्रो पर लंबे समय तक मुस्लिम शासन की जानकारी मिलती है |
अजमेर की शाहजहानी मस्जिद से 1637 ईस्वी का शिलालेख मिला, इस शिलालेख में पुष्कर के जहांगीर महल की जानकारी मिलती है |
साडेश्वर अभिलेख
इस अभिलेख से वराह मंदिर की व्यवस्था, शासकीय पदाधिकारी और स्थानीय व्यापार कर के बारे में पता चलता है |
कुमारपाल अभिलेख
1161ई. के इस अभिलेख में आबू की परमारो की वंशावली की संपूर्ण जानकारी मिलती हैं |
चीरवे का शिलालेख ( 1273 ई. )
उदयपुर से 8 किलोमीटर दूर चीरवा गांव में मंदिर के बाहर दीवार पर यह शिलालेख मिला था | इस शिलालेख में मेवाड़ के शासक अमर सिंह के बारे में वर्णन किया हुआ है | इस शिलालेख को संस्कृत में लिखा गया है, साथ ही 51 श्लोकों का वर्णन भी मिलता है |
इस शिलालेख में गुहिल वंश, बप्पा, तेज सिंह, जैतर सिंह, पद्मसिंह का वर्णन मिलता है | इस शिलालेख में भगवान विष्णु मंदिर की स्थापना, शिव मंदिर हेतु खेतों का दान, सती प्रथा, शैव धर्म, मेवाड़ी गोचर भूमि इत्यादि विषय के बारे में भी जानकारी उपलब्ध है |
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रसिया की छत्री का शिलालेख
इस शिलालेख में बप्पा रावल से मेवाड़ के गुहिल वंश शासकों की उपलब्धि का वर्णन मिलता है | इस शिलालेख के कुछ अंश 13वीं सदी के जनजीवन पर आधारित है | यह 1274 ई. का शिलालेख चित्तौड़ के पीछे के दरवाजे पर लगा हुआ है |
इस शिलालेख में राजस्थान के पहाड़ी भाग की वनस्पति का चित्रण किया गया है | इसके अलावा आदिवासियों के आभूषण, वैदिक यज्ञ परंपरा और शिक्षा के स्तर की संपूर्ण जानकारी दी गई है |
चित्तौड-़ पार्श्वनाथ मंदिर अभीलेख
तेज सिंह की रानी जयतल्ल देवी के द्वारा पार्श्वनाथ मंदिर बनाने का उल्लेख मिलता है, इस अभिलेख में धर्म अवस्था, शासन व्यवस्था और धार्मिक सहिष्णुता के बारे में जानकारी मिलती है | भर्तृपुरीय आचार्य के उद्देश्य से इस मंदिर को बनाया गया है |
आबू का लेख
इस 1342 ई. के शिलालेख में मेवाड़ के शासक बप्पा से समर सिंह का संपूर्ण वर्णन मिलता है, इस अभिलेख में आबू की वनस्पति, यज्ञ ज्ञान इत्यादि प्रचलित मान्यताओं का भी वर्णन मिलता है |
गंभीरी- नदीे पुल अभीलेख
यह अभिलेख मेवाड़ के महाराणाओं की धर्म सहिष्णुता, राजनीति, मारवाड़ की आर्थिक स्थिति के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है | यह अभिलेख किसी ने अलाउद्दीन खिलजी के समय किसी स्थान से लाकर गंभीरी नदी के पुल पर लगा दिया था |
देलवाड़ा का शिलालेख
इस शिलालेख में राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक स्थिति पर उल्लेख मिलता है | इस शिलालेख में टांग नाम की मुद्रा के प्रचलन का भी उल्लेख मौजूद है | ये 1334 ई० का शिलालेख संस्कृत व मेवाड़ी भाषा में अंकित है |
विराट नगर अभिलेख
चक्रवर्ती सम्राट अशोक के दो अभिलेख विराट की पहाड़ी पर मिले थे | इस शिलालेख पर “पाली व ब्राह्मी लिपि” में वर्णन किया गया है | इस शिलालेख में सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म में आस्था प्रकट की गई है | इस शिलालेख कों 1840 ईस्वी में बिर्टिश सेना अधिकारी कैप्टन बर्ट दारा ने कटवा कर कोलकाता के संग्रहालय में रखवा दिया था |
समिधेश्वर मंदिर का शिलालेख
इस शिलालेख में मोकल द्वारा विष्णु मंदिर निर्माण का उल्लेख मिलता है | यह शिलालेख 1485 ई. का है | महाराजा लक्ष्मण सिंह ने भट्ट जैसे विद्वानों को आश्रय दिया था, यह भी उल्लेख है |
श्रृंगी ऋषि का शिलालेख
इस शिलालेख में लक्ष्मण सिंह और क्षेत्र सिंह की त्रिस्तरीय यात्रा का उल्लेख मिलता है | जहां उन्होंने विपुल धनराशि को दान दिया, व गया में मंदिरों का निर्माण करवाया | इस 1428 ई० अभिलेख में राजा हम्मीर का भीलो के साथ सफल युद्ध होने का भी उल्लेख मिलता है |
रायसिंह का अभिलेख
इस अभिलेख में बीका से रायसिंह तक के बीकानेर के शासकों की उपलब्धियों का बखूबी वर्णन मिलता है | इसमे राय सिंह के कार्यों का उल्लेख मिलता है | यह शिलालेख 1593 ई० का है |
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अंतिम शब्द
इस Article में हमने आपको राजस्थान में मौजूद सभी शिलालेखों के बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तार से बताई हैं | राजस्थान के प्रमुख शिलालेख व अभिलेख. तो हम उम्मीद करते हैं कि यह जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी | इस आर्टिकल को आप अपने मित्रों और परिवार के साथ सोशल मीडिया के जरिए शेयर जरूर करें |