राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र Musical Instruments of Rajasthan In Hindi

राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र – राजस्थान अपने शौर्य गाथा व वीरता के साथ-साथ संस्कृति और धरोहर के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। राजस्थान के प्रसिद्ध वाद्य यंत्र देश नहीं बल्कि दुनिया भर में कहीं पर भी नहीं है। इन वाद्य यंत्रों से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है।

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राजस्थान के प्रसिद्ध लोक वाद्य यंत्र को बनाना और इस्तेमाल करना इतना भी आसान नहीं है, कि कोई भी कर सके। विश्व प्रसिद्ध राजस्थान के प्रमुख व प्रसिद्ध लोक वाद्य यंत्र के बारे में हम आपको विस्तार से संपूर्ण जानकारी बताएंगे। तो इस आलेख को आप पूरा अंत तक पढ़े –

Table of Contents

राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र कौन-कौनसे हैं?

ढोल, ढोलक, डमरु, थाली, करताल, खड़ताल, घुंगरू, घंटा, मंजीरा, रमझोल, जंतर, इकतारा, रबाब, भपंग, पावरा, तंदूरा, चिंकारा, रावण हत्था, कमायचा, मोरचंग, चंग, मुरली, पुंगी, अलगोजा, शहनाई, नागफनी, सारंगी, डांडिया, घुंगरू, मादल, सातारा, मृदंग, श्री मंडल, तुरई, मशक, स्टमक, सूरमंडल, कैनरा, टोटो, नड़, कानी इत्यादि है।

लोक वाद्य यंत्र किसे कहते हैं?

सर्व जातीय व सभी आम जनता द्वारा बजाया व इस्तेमाल किया जाने वाले वाद्य यंत्रों को “लोक वाद्य यंत्र” कहा जाता है। इसे एक लाइन में कहे तो सामान्य जन में प्रचलित वाद्य यंत्र को लोक वाद्य यंत्र कहते हैं।

राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र कितने प्रकार के हैं?

मारवाड़ राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र को सामान्य तौर पर चार अलग-अलग भागों में बांटा गया है जो निम्न प्रकार है-

1. घन वाद्य

2. अवनद्ध वाद्य

3. सुषिर वाद्य

4. तत् वाद्य

घन वाद्य यंत्र किसे कहते हैं?

किसी भी धातु से निर्मित वाद्य यंत्र को “घन वाद्य यंत्र” कहते हैं? इसे एक विशेष प्रकार के डंडे की सहायता से या फिर आपस में टकरा कर बजाया जाता है।

राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र Musical Instruments of Rajasthan In Hindi
राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र Musical Instruments of Rajasthan In Hindi

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राजस्थान में घन वाद्य यंत्र कितने प्रकार के हैं?

घुंघरु
खड़ताल
करताल
रमझौल
डांडिया
लेजिम
श्रीमण्डल
टंकोरा
मंजीरा
हांकल
चिमटा
झाँझ
घड़ा
झालर

1. राजस्थान के प्रमुख घन वाद्य यंत्र

करताल

टीवी में किसी धारावाहिक या फिर तस्वीर में आपने नारद मुनि को बजाते हुए देखा होगा, जब वह नारायण-नारायण करते हैं, तो अपने एक हाथ से करताल का इस्तेमाल करते हैं। करताल को दो बराबर भागों में एक हाथ में पकड़ कर बीच में अंगूठा रखकर बजाया जाता है।

रमझौल

राजस्थान में लोक नृत्य करने वाले नृतकों के पावों में घुंगरू की एक चौड़ी पट्टी बांधी जाती है। इससे एक विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है, जिससे नृत्य में चार चांद लग जाते हैं।

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खड़ताल

मांगणियार पीढ़ी दर पीढ़ी खड़ताल वाद्य यंत्र को बजाकर अपना जीवन यापन करते हैं। मांगणियार कलाकारों की वंशानुगत खड़ताल बजाने का कार्य है। रोहिडा के लकड़ी से बने दो पतली पट्टी नुमा करताल को आपस में टकरा कर एक अद्भुत ध्वनि उत्पन्न की जाती है।

लेजिम

गरासिया जाति इस वाद्य यंत्र को नाच गाना के आयोजन में बजाया जाता है। बास की लकड़ी से धनुष आकार में बनी हुई इस वाद्य यंत्र पर पीतल की गोल-गोल पत्तियां लगाकर इससे विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न की जाती है।

घड़ा

घरों में मिट्टी के घड़े में पानी भरकर रखने वाले घडे को मटका भी कहते हैं। इस मटके को गोद में रखकर अंगुलियों से ढोलक व तबले की तरह बजाया जाता है।

श्रीमण्डल

श्री मंडल वाद्य यंत्र को तरंग वाद्य यंत्र भी कहते हैं। इसे मुख्य तौर पर वैवाहिक जैसे मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है।

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झालर वाद्य यंत्र

तांबा पीतल जैसे तत्वों से बने हुए बिना किनारों की थाली को सुबह शाम मंदिरों में आरती के समय बजायी जाती हैं।

मंजीरा

पीतल व काँसे जैसे तत्वों से बने हुए यह एक गोल कटोरी नुमा वाद्य यंत्र है, इन्हें आपस में टकरा कर ध्वनि उत्पन्न की जाती है।

घुंघरु

राजस्थान में नृत्य करने वाले कलाकार अपने पैरों व कमर पर घुंगरू को बांधकर नृत्य करते हैं। इससे विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है।

झाँझ

मंजीरा की ही तरह झाँझ तलवा जैसे मिश्र धातु से बने हुए होते हैं। यह बड़े चकरा कार यंत्र होते हैं इन्हें आपस में टकरा कर बजाया जाता है।

टंकोरा

टंकोरा को घंटी, टकोरी, व घंटा भी कहते हैं। इसे आमतौर पर मंदिरों में व समय ज्ञात करने हेतु, टन-टन की आवाज में बजाया जाता है।

चिमटा

चिमटा को आम भाषा में चीपिया भी कहते हैं। चिमटा राजस्थान में शाम के समय भजन वह संगीत में बजाया जाता है।

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हांकल

हांकल लोहे की बनी हुई एक श्रंखला होती है, जिसे आमतौर पर आदिवासी व धर्मगुरु भोपे अपने देवी-देवताओं या इष्ट को प्रसन्न करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। हांकल को गाय-भैस बांधने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

डांडिया

दो छोटी-छोटी और पतली सी लकड़ियां आपस में टकरा कर बजाया जाता है, इसे आमतौर पर राजस्थान के लोक नृत्य घूमर, गीदड़, गैर, इत्यादि में उपयोग किया जाता है।

राजस्थान में अवनद्ध वाद्य यंत्र किसे कहते हैं?

ऐसे वाद्य यंत्रों को जानवरों के चमड़े से बनाया जाता है चमड़े को यंत्र के ऊपर डालकर बनाया जाता है इन वाद्य यंत्रों को लकड़ी के डंडे व हाथ की मदद से बजाया जाता है

राजस्थान के प्रमुख अवनद्ध वाद्य यंत्र कौन-कौनसे हैं?

ढोल
चंग
खंजरी
नगाड़ा
टामक
वृन्द वाद्य
रावलों की मादल
नौबत
कुंडी
तासा
ढोलक
भीलों की मादल
पाबूजी के माटे
डेरू
घेरा
ढफ

2. राजस्थान के प्रमुख अवनद्ध वाद्य यंत्र

चंग

चंग राजस्थान का सबसे लोकप्रिय वाद्य यंत्र हैं। चंग को होली के समय फाल्गुन का महीना शुरू होते ही पूरे राजस्थान में उल्लास के साथ गीत गाते हुए बजाते हैं।

नगाड़ा

नगाड़ा यंत्र को भैंस की खाल से बनाया जाता है। यह दो समान आकृति के कटोरी नुमा पत्र होते हैं। इन्हें दो अलग-अलग दलों से बजाया जाता है।

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ढोलक

शीशम, निम, जामुन, आम या फिर सागवान जैसी लकड़ी पर दोनों तरफ बकरे की खाल को मढकर ढोलक को बनाया जाता है। ढोलक को हाथ से ही बजाया जाता है।

ढफ

चंग वाद्य की तरह दिखने वाला ढफ वाद्य यंत्र इससे थोड़ा बड़ा होता है। व लोहे की परत पर बनाया जाता है। इसे आमतौर पर बकरे की खाल से बनाया जाता है जो अनेक प्रकार के आयोजन में बजाया जाता है।

खंजरी

खंजरी वाद्य यंत्र को राजस्थान में जोगी व कालबेलिया जनजाति के लोग बजाते हैं। यह लोग भजन कीर्तन करते समय कजरी वाद्य यंत्र का इस्तेमाल करते हैं।

ढोल

लकड़ी से बने गोलाकारा पात्र के दोनों तरफ जानवर की खाल को मढकर डोरियों की मदद से कसकर बाध दिया जाता है। इसे एक हाथ में डंडे व दूसरे हाथ के अंगुलियों से विवाह शादी जैसे मांगलिक उत्सव में बजाया जाता है।

टामक

राजस्थान के सबसे बड़े वाद्य यंत्र की सूची में टामक वाद्य यंत्र सबसे प्रथम है। यह एक बहुत ही बड़ा नगाड़ा होता है, जो लोहे की परतों को जोड़कर बनाया जाता है। इसे मोटे चमड़े वाले जानवरों की चमड़ी से बनाया जाता है।

प्राचीन काल में इस वाद्य को दुर्ग व कीलों की प्राचीर पर युद्ध के संकेत हेतु बजाया जाता था, क्योंकि इसकी ध्वनि बहुत दूर तक पहुंचते हैं।

रावलों की मादल

यह रावल लोगों का प्रमुख वाद्य यंत्र है। जो राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्रों में शामिल है। यह वाद्य यंत्र ढोलक नुमा आकार का ही होता है। जिसका एक मुंह पतला तो दूसरा मुंह चौड़ा होता है।

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नौबत

शहनाई के साथ बजाने जाने वाले इस वाद्य यंत्र को जानवरों की खाल से बना कर तैयार किया जाता है।

कुंडी

आमतौर पर राजस्थान के आदिवासी लोग जो सिरोही व मेवाड़ क्षेत्र में निवास करते हैं। वे इस वाद्य यंत्रों को दो छोटी छोटी लड़कियों के माध्यम से बजाते हैं।

तासा

तांबा, लोहा या मिट्टी से बने हुए बड़े पात्र पर जानवरों की खाल को मढकर पूरी कसावट के साथ उसमें छेद कर इस वाद्य यंत्र को बनाया जाता है। इस वाद्य यंत्र को ढोल के साथ भी बजे जाता है।

पाबूजी के माटे

मिट्टी से बने बड़े मटके को पश्चिम राजस्थान में भील जनजाति के लोग लोक देवता के दिवस पर बजाते हैं।

डेरू

डमरु की ही तरह दिखने वाला यह वाद्य राजस्थान का एक प्रमुख वाद्य यंत्र है। इस यंत्र के दोनों तरफ चमड़े को बांधकर तैयार किया जाता है। इसे लोक देवता के भजन व उत्सव में बदल जाता है।

भीलों की मादल

यह वाद्य यंत्र आदिवासी जातियों के नामों से प्रचलित है। मिट्टी से बने हुए पात्र के ऊपर जानवर की खाल को चढ़ाकर कुछ विशेष प्रकार से इसे तैयार किया जाता है, जो एक खास किस्म की ध्वनि उत्पन्न करता है।

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वृन्द वाद्य

यह एक राजस्थान का प्रमुख लोक वाद्य यंत्र हैं। यह मिट्टी से बना हुआ एक पात्र होता है, जो ढोल की तरह आकार में छोटा होता है। इसके एक तरफ चमड़े की पर्थ और दूसरी तरफ काशी की थाली लगी हुई होती है। जिससे अलग किस्म की ध्वनि उत्पन्न होती है।

घेरा

घेरा भी चंग की तरह राजस्थान का एक प्रसिद्ध लोक संगीत वाद्य यंत्र है यह मेवाड़ के मुसलमानों का प्रमुख वाद्य यंत्र है।

राजस्थान में सुषिर (फूंक) वाद्य यंत्र क्या होता हैं?

इन वाद्य यंत्रों को वादक द्वारा मुंह से फूंक मारकर बजाया जाता है, इसीलिए इसे “फूक वाद्य यंत्र” भी कहते हैं।

राजस्थान के प्रमुख सुषिर (फूंक) वाद्य यंत्र कौन-कौनसे हैं?

बाँसुरी
मशक
सतारा
मोरचंग
सुरनई
अलगोजा
नागफणी
नड़
सिंगा
मुरली
करणा
बांकिया
तुरही
पूंगी

3. राजस्थान के प्रमुख फुक (सुषिर) वाद्य यंत्र

बाँसुरी

बांसुरी राजस्थान का एक प्रमुख लोक वाद्य यंत्र है। इसे बंसी भी कहते हैं। यह बाॅस से निर्मित नलिका होती है, जिस पर गोल-गोल छेद किए जाते हैं। इन छेद पर अंगुलियों को रखकर मुंह से फूंक मारकर एक विशेष प्रकार की अद्भुत ध्वनि उत्पन्न की जाती है।

सतारा

सातारा राजस्थान का प्रमुख लोक वाद्य यंत्र हैं। यह अलगोजा की तरह दिखता है। यह केर की लकड़ी से बनाया जाता है। इसमें बांसुरी की तरह छेद होते हैं, जिससे अद्भुत ध्वनि निकलती है।

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अलगोजा

अलगोजा राजस्थान का एक प्रमुख व प्रसिद्ध लोक वाद्य यंत्र हैं, जो देश और दुनिया में काफी प्रचलित हैं। यह बांस की नली का बना हुआ एक वाद्य हैं। इसे मुंह से आदिवासी भील व कालबेलिया जनजाति के लोग बजाते हैं।

मुरली

मुरली राजस्थान का एक प्रसिद्ध लोक वाद्य यंत्र है, जो सपेरे सांप को नचाने में काम लेते हैं। इसे आमतौर पर कालबेलिया, जोगी, मांगणियार कलाकार बजाते हैं।

पूंगी

कालबेलिया जनजाति का सबसे प्रसिद्ध वाद्य यंत्र पुंगी है। इस वाद्य यंत्र को कालबेलिया जनजाति के लोग मुह से सांस के नियंत्रण पर बजाते हैं।

मोरचंग

मोरचंग राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र में से एक हैं, इसे आदिवासी लोग बजाते हैं। यह राजस्थान सहित पूरे भारत में सांस्कृतिक तौर पर प्रचलित है। इसे दांतो के बीच दबाकर बताया जाता है।

बांकिया

बाकिया लोक वाद्य यंत्र को राजस्थान में सरगरा जनजाति के लोग विवाह एक अवसर पर बजाते हैं। यह एक पीतल का वर्क के आकार का यंत्र होता है।

नागफणी

राजस्थान में साधु संतों का प्रमुख धार्मिक वाद्य यंत्र नागफनी है। यह पीतल का बना हुआ सर्पाकार वाद्य होता है।

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नड़

नड वाद्य यंत्र राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में आदिवासी जनजाति भोपा द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। इस वाद्य यंत्र को मुंह पर टेढ़ा रखकर फुक के माध्यम से स्वर्ग का उतार-चढ़ाव किया जाता है।

करणा

पीतल की चादर से बने हुए इस वाद्य यंत्र को होटो में दबाकर फुक से बजाया जाता है। इस वाद्य यंत्र की लंबाई 8 से 10 फीट की होती है।

मशक

मशक राजस्थान का एक प्रसिद्ध व प्रमुख लोक वाद्य यंत्र हैं। यह वाद्य यंत्र बकरे की खाल से गुब्बारे की तरह बना हुआ होता है। इस के निचले भाग में मुंह से हवा भरी जाती है। जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है।

सुरनई

यह वाद्य यंत्र शहनाई की तरह होता है, जो लकड़ी के नलिका होती है। इसे भी होठों में दबाकर मुंह से फूंक मारकर बजाया जाता है।

तुरही

राजस्थान के प्रमुख व प्रसिद्ध लोक वाद्य यंत्र में तुलही भी शामिल है। इस वाद्य यंत्र का एक चौड़ा जबकि दूसरा हिस्सा संकटा होता है, इसे मुंह में चिलम की तरह रखकर बजाया जाता है।

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सिंगा

सिंगा रावत यंत्र को राजस्थान में सन्यासी वा जोगी बजाते हैं। यह सिंह के आकार का vadya होता है। इसीलिए इसे सिंगा वाद्य यंत्र कहते हैं।

राजस्थान में तत् (तार) वाद्य यंत्र किसे कहते हैं?

जिन वाद्य यंत्रों में तार लगे हुए होते हैं उसे “तार वाद्य यंत्र” कहते हैं। इन वाद्य यंत्रों को हाथ की अंगुलियों या फिर तार से बने डंडे से बजाया जाता है।

राजस्थान के प्रमुख तार (तत्) वाद्य यंत्र कौन-कौनसे हैं?

रावणहत्था
इकतारा
सुरमण्डल
कमायचा
दुकाको
जन्तर
चौतारा
सांरगी
रबाब
सुरिंदा
रवाज
भपंग

4. राजस्थान के प्रमुख तत्/तार वाद्य यंत्र

रावणहत्था

रावण्हत्ता राजस्थान का प्रसिद्ध व प्रमुख लोक वाद्य यंत्र है। इस वाद्य यंत्र का इस्तेमाल राजस्थान में आमतौर पर लोक देवता पाबूजी के भजनों में किया जाता है।

इस वाद्य यंत्र पर घोड़े की पूंछ के बाद लगे हुए होते हैं। यह राजस्थान का एक अत्यंत प्राचीन लोक वाद्य यंत्र है। इस लोक वाद्य यंत्र पर सुपारी के लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।

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इकतारा

यह हाथ में पकड़ कर बजाए जाने वाला वाद्य यंत्र है इसे भक्ति संगीत वाद्ययंत्र भी माना जाता है, क्योंकि इसे साधु-संतों तथा कालबेलिया जाति के लोग बजाते हैं। यह बांस की लकड़ी के एक सिरे पर चमड़े को मढकर तारों को बांधकर तैयार किया जाता है।

चौतारा

सतारा वाद्य यंत्र को वीणावाद्य भी कहते हैं। यह तारों से बना वाद्य यंत्र होता है। जिसे रामदेव जी के भजन गाते समय लोग बजाते हैं। यहां रोहिड़ा की लकड़ी से बनाया जाता है।

सुरमण्डल

सुरमंडल राजस्थान का एक प्रमुख वाद्य यंत्र है। इस यंत्र को लकड़ी के गत्ते पर तार को कसकर बनाया जाता है। उन तारों पर तार से बने हुए एक और डंडे को आगे पीछे करके बजाया जाता है।

जन्तर

जंतर लोक वाद्य यंत्र को देवताओं का वाद्य यंत्र कहा जाता है। क्योंकि इसे आमतौर पर भोज बगड़ावत व देवनारायण जी के भोपा अपने देवताओं को प्रसन्न करने हेतु बजाते हैं। यह वाद्य यंत्र तीन चार फीट लंबा एक बास पर बनाया जाता है।

भपंग

खाल से बने हुए इस वाद्य यंत्र पर तार लगे हुए होते हैं। इससे लय के आकार की ध्वनि निकलती है। यह वाद्य यंत्र अलवर क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रचलित है।

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सांरगी

सारंगी वाद्य यंत्र राजस्थान का एक प्रमुख लोक वाद्य यंत्र है वाद्य यंत्रों में सारंगी वाद्य को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। सारंगी लोक वाद्य यंत्र को शास्त्रीय संगीत में इस्तेमाल किया जाता है। यह केर व रोहिडा या सागवान की लकड़ी से बनाया जाता है। इस पर 27 तार लगे हुए होते हैं।

दुकाको

दुकाको राजस्थान का एक लोक वाद्य यंत्र है। इसे भील जाति के लोग बजाते हैं। इसका आकार 6 या 8 इंच बेलनाकार कार होता है। इसे हाथ की इच्छा के अनुसार ताल व लय के अनुसार बदल जाता है।

कमायचा

कमायचा राजस्थान का प्रमुख लोक वाद्य यंत्र व प्रसिद्ध लोक वाद्य यंत्र हैं। यह दिखने में सारंगी जैसा ही वाद्य यंत्र है, लेकिन इसकी बनावट सारंगी वाद्य यंत्र से थोड़ी सी अलग है। इस वाद्य यंत्र पर 16 तार लगे हुए होते हैं। इसका इस्तेमाल मांगणियार कलाकार करते हैं।

रबाब

रबाब राजस्थान का एक प्रमुख प्रसिद्ध लोक वाद्य यंत्र हैं। इससे वाद्य यंत्र को राव व भाट जाति के लोग मेवाड़ क्षेत्र में अत्यधिक बजाते हैं। इस वाद्य यंत्र पर कुल 5 तार लगे हुए होते हैं, जो विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न करते हैं।

सुरिंदा

यह एक राजस्थान का प्रमुख लोक वाद्य यंत्र हैं। इस वाद्य यंत्र को अधिकांश तौर पर मारवाड़ के लोक कलाकार उपयोग करते हैं। यह वाद्य यंत्र रोहिड़ा की लकड़ी से बनाया हुआ होता है। इस पर 3 तार लगे हुए होते हैं। यह वाद्य यंत्र राजस्थान के संगीत नाटकीय अकादमी का प्रतीक चिन्ह है।

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रवाज

रवाज राजस्थान का प्रमुख लोक वाद्य यंत्र हैं। इस वाद्य यंत्र को रावल व भाट लोकनाट्य में बजाते हैं।

अंतिम शब्द

इस आर्टिकल में आपको हमने राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र के बारे में संक्षिप्त में पूरी जानकारी विस्तार से और आसान भाषा में बताइ है। तो हम उम्मीद करते हैं कि राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र के बारे में यह जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। इस आर्टिकल को आप अपने परिवारजनों और दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।

नमस्कार SkyRajasthan.com पर आपका बहुत-बहुत स्वागत है. मेरा नाम माही बन्ना है. मैं जोधपुर राजस्थान का रहने वाला हूं. मुझे राजस्थान की संस्कृति, सभ्यता एवं मारवाड़ से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी साझा करने में काफी रुचि है. मैं पिछले 5+ वर्षों से Article Writing कर रहा हूं. यहां पर मैं राजस्थान से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी उपलब्ध कराने की पूरी कोशिश कर रहा हूं।

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